Saturday 2 April 2016

अवधारणा (Perception परसेप्शन)

बराबरी का हक़ (Right to equlity)......सुन के बहुत अच्छा लगता है न? किसी समाज सुधारक विचार को। लगना भी चाहिए। महिला पुरुष को बराबरी का हक़ मिलना चाहिए। अमीर गरीब को बराबरी का हक़ मिलना चाहिए। हर मजहब, हर जाति के लोगों को बराबरी का हक़ मिलना चाहिए। मैं भी इसके खिलाफ नहीं हूँ लेकिन क्या है कि जब भी इन सबके लिए लड़ने वालों को या आवाज़ उठाने वालों को देखता हूँ तो बहुत निराशा होती है। उनके इन मांग में भी बराबरी नहीं होता बल्कि स्थिति को उल्टा करने की प्रविर्ती होती है। अगर महिलाओं के लिए आवाज़ उठा रहे हैं तो उन्हें पुरुष से ज्यादा शक्तिशाली बनाने की चेष्टा रखते हैं। अगर गरीब के लिए आवाज़ उठा रहे हैं तो उन्हें अमीरों पर हुक़ूमत की आज़ादी चाहते हैं। अगर निम्न जाति के लिए आवाज़ उठा रहें हैं तो उच्च जाति पर हुक़ूमत चाहते हैं। मान लीजिये ऐसा हो जाये कि सबकी मांग पूरी हो जाए। तो क्या होगा? सबको बराबरी का हक़ मिल जायेगा? या फिर सिर्फ पक्ष बदलेगा? लड़ाई तब भी चलती रहेगी बस वादी और प्रतिवादी के स्थान बदल जायेंगे।
अक्सर मैंने देखा है कि अगर किसी महिला और पुरुष के बीच, अमीर और गरीब के बीच, एक धर्म के लोगों का दूसरे धर्म से, या फिर उच्च जाति का निम्न जाति से विवाद होता है तो पुरुष सारी जिम्मेदारी महिला पर थोप देते हैं और महिला सारी जिम्मीदारी पुरुष पर, अमीर गरीब पर और गरीब अमीर पर, हिन्दू मुसलमान पर और मुसलमान हिन्दू पर, उच्च जाती निम्न पर और निम्न उच्च पर। कौन सही है कौन गलत है इससे किसी को कोई लेना देना नहीं है। बस पहले से एक परसेप्शन बना हुआ है एक दूसरे के प्रति, उसी ढर्रे पर दोनों अपना फैसला सुना देते हैं और उसी फैसले, जिसका की आधार ही गलत है, के बुते अपना सारा निर्णय लेते हैं। कुछ इन्ही सब वजहों से मुझे कानून के शब्द "प्राइमा फेसी" से नफरत होने लगा है। हाँ इस बात को मानता हूँ कि किसी एक का दूसरे पर डोमिनेन्स हो सकता है और इस बात का वो फायदा भी उठा सकता है। लेकिन सर इसी बिनाह पर कि कोई डॉमिनेटिंग स्थिति में है तो वो गलत किया होगा ये जरुरी नहीं है। कानून को कभी किसी ने गाइड की तरह माना कब है? उसका रोल तो तब आता है जब घटनाएं घट जाए या फिर न घटे तो कृत्रिम कहानी बनाकर ब्लैकमेल करना हो।
हमारे यहाँ इस तरह की हर लड़ाई का आधार यही है कि जो ऊपर है उसे निचे ला दो और जो निचे है उसे ऊपर। आरक्षण को ही देख लीजिये। इसमें व्यवस्था ये होनी चाहिए कि सब को बराबरी का मौका मिले सब बराबरी में आ जाये लेकिन व्यवस्था ये है कि दूसरे की जगह दूसरों को दे दो। महिला सुरक्षा क़ानून को ही देख लीजिये। व्यवस्था ये होनी चाहिए कि पुरुष और महिलाओं में अंतर न किया जाए लेकिन व्यवस्था ये है कि पुरुषों को प्राइमा फेसी गलत मान लिया जाए। बाकी और भी कई उदाहरण है आप दिन भर बैठ कर सोचते रहिएगा।
आप महिला, माइनॉरिटी आदि को लेकर अक्सर बहुत कुछ पढ़ते होंगे और आप खुद सामाजिक मानसिक रूप से जागृत समझने लगते होंगे खुद को। हाँ ये अलग बात है कि आपने कभी दूसरे पक्ष को जानने की हिमाकत नहीं की होगी। अगर ऐसा है तो फिर सावधान हो जाइए क्योंकि हो सकता है आप गलत आधार पर निर्णय ले रहे हों और बाद में पश्चाताप हो। सबकुछ जो हमारे सामने पेश किया जाता है वैसा वाकई में होता नहीं है।
-----------------------
चन्दन chandan
02-04-2016
-----------------------

3 comments:

  1. This was a nice post. Thanks for sharing such types of posts. We would recommend you to go to afsaana for new stories. Thanks

    ReplyDelete
  2. Paysense क्या है? Paysense Loan App से लोन कैसे लेते हैं? Paysense Loan App Review

    Paysense क्या है? Paysense Loan App से लोन कैसे लेते हैं? Paysense Loan App Review


    वर्तमान समय में पैसे की समस्या हर किसी को होती है चाहे आप एक स्टूडेंट हो या फिर आप नौकरी करते हैं या फिर आप बिजनेसमैन हो, हर किसी को इस महंगाई के जमाने में पैसों की जरूरत पड़ती है. यदि आपके पास पैसे है तो आप हर वह काम कर सकते हैं जो आप सोचते हैं, लेकिन यदि आपके पास पैसे नहीं है तो आपको खाने के भोजन की भी कमी का सामना करना पड़ सकता है.

    ReplyDelete