हर दिन लोग किसी न किसी ख़ुशी, मुस्कान या रंजो-गम से गुजरते हैं, कुछ यादें देती है तो कुछ सबक! ऐसे ही किसी दिन की किसी खास भावनाओं से कुछ सीख लेता हुआ कुछ यादें सहेजता हुआ मेरे जीवन का एक पन्ना !
Saturday, 13 December 2014
A Chapter from "Jara si Life" a radio show hosted on Fever 104.8 FM by Richa
Monday, 25 August 2014
माँ का प्यार: अनसुलझी रहस्य
कहते हैं न की किसी के महत्व का अहसास तब होता है जब वो हमारे पास न हो। सही है शत-प्रतिशत सही है। उसी न होने में एक अहसास माँ का पास न होना भी है। स्मरण है मुझे जब भी माँ पास होती है तो किसी बात को छुपाना बड़ा मुस्किल होता है खासकर अगर वो पीड़ा हो। किसी भी अनियमित व्यवहार को बिना बताये परख लेती है माँ। लेकिन वही व्यवहार अगर किसी और के सामने हो तो परखना तो दूर पर प्रश्न जरूर उठ जाते हैं।कभी कभी सोचता हूँ कि हर स्त्री कभी न कभी किसी किसी की माँ कहलाने का सौभाग्य प्राप्त करती है । ऐसा क्या है जो उसे अपने संतान से इस तरह जोड़ देती है कि उसे अपने संतान के हर पीड़ा की अनुभूति पहले ही ज्ञात हो जाती है? ऐसा भी नहीं कह सकता कि उनका यही प्रेम हर मनुष्य के लिए होता है। जो अगाध प्रेम माँ का अपने संतान से होता है , जिस मनसा से वो अपने संतान का रक्षण करती है, वही मनसा अगर सबके साथ हो तो कैसा होगा? शायद किसी को माँ की कमी का अहसास नहीं होगा, शायद किसी को पीड़ा बताने का कष्ट न करना पड़ेगा, शायद किसीको किसी स्त्री के प्रति संदेह ना होगा, शायद किसी स्त्री के मन में किसी से इर्ष्य ना होगी। पर जानता हूँ ये मुमकिन नहीं है। अगर संसार में बुराई है तभी अच्छाई का महत्व है। अगर किसी के मन में इर्ष्या है तभी शायद प्रेम का भी महत्व है। बातें समाप्त नहीं हुई है, सवाल और भी हैं पर जेहन में है...
-Chandan
Friday, 15 August 2014
आज़ादी के कुछ रंग मेरी नज़रों से...
Sunday, 11 May 2014
अस्पताल के बिस्तर से...
© Chandan
Tuesday, 8 April 2014
जाति-पाति रंग-रूप और पैसा भाग-१
मैं एक बार किसी महात्मा से मिला या यूँ कहें कि अपने कुलगुरु से मिला जो हमेशा मुझे नास्तिक समझते हैं। मैंने उनसे कुछ साधारण से सवाल किये कि जाति-पाति का क्या महत्व है? उन्होंने कहा जाति होता क्या है भगवन ने हमें सिर्फ इंसान बनाया और हम सिर्फ इंसान हैं न हिन्दू न मुस्लमान। मैंने पूछा की क्या यह सिर्फ कहने-सुनने की बातें है या धरातल पे भी है? उन्होंने कहा हाँ बिलकुल है। मैंने फिर पूछा क्या अगर मैं किसी मुस्लिम कन्या से विवाह करूँ तो आपकी मंजूरी होगी? उन्होंने कहा - विवाह स्वजातीय होनी चाहिए।
ठीक यही सवाल मैंने उनके परम शिष्य से पूछा उनका जवाब था - धरातल पे विरले ही देखने को मिलता है लेकिन सच यही है की हम सिर्फ इन्सान हैं। और अगर आप किसी भी कन्या से विवाह करें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
मुझे पता चला की गुरु जी अपने उस परम शिष्य के लिए कन्या की तलाश में हैं। मैंने जानने की कोशिस की कि उनका मापदंड क्या है किसी कन्या को चुनने का। पता चला कन्या गोरी होनी चाहिए, पढ़ी लिखी होनी चाहिए, और तो और उन्हें एक चार चक्का गाड़ी की भी दरकार थी। मुझसे रहा न गया मैं फिर उनसे सवाल किया। गुरूजी , आपके मापदंड में गोरी होना क्यों अवश्यक है? अगर कोई काली या सव्न्ली है तो उसमे उसका क्या दोष? जवाब में वो गुस्सा कर गए- मुझे तुम व्यावहारिकता का ज्ञान मत दो मुझे इस चीज़ की समझ अच्छी है।और आध्यात्मिकता को इससे मत जोड़ो।
मेरे समझ में ये आजतक नहीं आया कि दोनों स्वतंत्र कैसे हो सकते है? आप इस दुनिया में रहते हैं तो व्यावहारिकता से बच नहीं सकते और अगर किसी का खून करना व्यवहारिकता में गलत है तो अध्त्यम इसे सही करार कैसे दे सकती है?
मेरे सवालों का जवाब तो नहीं मिला लेकिन एक सलाह मिली उनके परम शिष्य से कि आप ओशो का अध्यन कीजिये आपको जबाब मिलेगा। ओशो को तो नहीं पढ़ सका अब तक कोशिश जरूर करूँगा जबाब जानने की।
Saturday, 8 March 2014
Saturday, March 08, 2014
Sunday, 9 February 2014
गाँव से शहर
एक तरफ जहाँ लोग इतने काबिल या आधुनिक हो गए हैं कि नए नए नियम बनाने लगे हैं और दूसरी तरफ जिन्दगी तो बस गुजारने की इच्छा से जी रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उन्हें पैसों की पहचान नहीं है, आधुनिकता का आगाज़ नहीं है; पैसे उनके लिए भी मायने रखती है पर उनकी अपनी एक सीमाएं बंधी है। जहाँ के उस पार सिर्फ इंसानियत है, भाईचारा है, एक दुसरे को जीने देने और खुद भी जीने की ललक है। लेकिन ये सब बदल रहा है, वहां भी इंसानियत खोती जा रही है। कल तक जो पिछली पीढ़ी खेती के अलावे गाँव कस्बों में कुछ और रोजगार करने की सोचते थे और करते थे आज अब की पीढ़ी वहां से निकलती जा रही है। सभी बड़े बड़े शहरों में जा रहे हैं अनजान लोगों के बीच। किसी को जब मैंने बचपन में देखा था याद नहीं फिर वो कभी गाँव वापस आया भी या नहीं। सोचता हूँ मैं आज से 20 साल बाद जब ये बड़े बुज़ुर्ग गुजर जायेंगे तो गाँव कहीं सुना न हो जाये क्योंकि 80% बच्चे तो गाँव छोड़ देते हैं अपने भविष्य के लिए और एक नयी जिन्दगी की जद्दो जिहद में लगे रहते हैं।