Sunday 11 May 2014

अस्पताल के बिस्तर से...

बाहर मौसम बहुत सुंदर है, हलकी ठंडी हवा बह रही है और कभी कभी बूंदा-बूंदी बारिश भी हो रही है| देखता हूँ खिड़की से बाहर दो बच्चे खेल रहे हैं सड़क पर - कभी बारिश के बूंदों का अहसास लेकर कभी ठंढी हवाओं का आह भरकर| मेरा भी मन कर रहा है बारिश में भीगने का, हवाओं को महसूस करने का लेकिन मैं बाहर नहीं जा सकता, डाक्टर ने मना किया है कहते हैं की मैं बाहर नहीं जा सकता , मैं उठ नहीं सकता, मैं उनकी बात सुन कर खामोश रह जाता हूँ | मुझे पिछले एक महीने से इसी कमरे में बंद कर दिया है तब से न सूरज को देखा न ही रात में अपना आकर बदलते चाँद को| सब लोग कहीं चले गए हैं किसी की आवाज़ भी नहीं सुनाई देती है| मैंने माँ से पूछा तो कहती है कि मैं बीमार हूँ इसलिए डाक्टर ने सोने के लिए कहा है जब तक की मैं ठीक नहीं हो जाता| मुझे क्या हुआ है? माँ कहती है कि कुछ नहीं बस मैं थक गया हूँ न इसलिए कुछ दिन आराम कर लूँगा तो ठीक हो जाऊँगा| सुबह- सुबह मुझे उठाया जाता है मेरे बिस्तर बदले जाते हैं और फिर मुझे सब दोबारा सुला देते हैं| मेरे दोस्त आये थे मिलने मुझसे, कह रहे थे बाहर मौसम बहुत अच्छा है लेकिन मुझे नहीं पता कितना अच्छा है| अस्पताल के बाहर एक पेड़ है, खिड़की से देखता हूँ तो उसके पत्ते तेजी से हिलते दिखाई देते हैं लेकिन मुझे उस पत्तों की सरसराहट भी सुनाई नहीं देती| डाक्टर ने खिड़की खोलने मना किया है| डाक्टर कहते हैं कि बाहर कभी ठण्ड और कभी गर्मी हो रही है जो कि मुझे और भी बीमार कर सकती है| लेकिन सभी तो खेल रहे हैं बाहर तो फिर मैं क्यों नहीं? मैं सुबह से शाम और शाम से सुबह तक बिस्तर पर लेटा रहता हूँ, माँ खाना लाती है और अपने हाथों से खिलाती है, मैं अपने हाथ से नहीं खा सकता, मेरे हाथ में हमेशा सुईं चुभी रहती हैं| लेकिन अब मैं माँ से रूठा हूँ, मैंने दो दिन से बात नहीं किया है माँ से क्योंकि मुझे हमेशा खिचड़ी देती है खाने के लिए, कहती है कि मैं मिर्च मसाले नहीं खा सकता लेकिन पहले तो खाता था तो अब क्यों नहीं खा सकता? बचपन में मुझे जब बुखार लगता था तो दादा जी चावल खाने से मना कर देते थे तब मुझे ना मेरी मम्मी चुपके से गरम-गरम चावल खिलाती थी और मैं ठीक हो जाता था | माँ को पता है मुझे चावल बहुत पसंद है और साथ में तीखी सब्जी| सब आपस में बात करते हैं कि मैं बीमार हूँ| कल भी गाँव से फ़ोन आया था, मेरी माँ ने बताया कि मैं अभी एक सप्ताह और अस्पताल में रहूँगा| लेकिन तब तक मौसम फिर से बदल जायेगा और मैं इस मौसम को महसूस नहीं कर पाऊंगा| लेकिन आज डाक्टर ने सुबह सुबह मेरी माँ को बुलाया था और माँ मुझे अकेला छोड़ कर चली गई थी और वापस आई तो मैंने देखा कि माँ की आँखे नम थी| मैंने पूछा तो बोली कि रो नहीं रही थी मुह धोकर आई है इसलिए आँख भींगी हुई है और डॉक्टर ने कहा है की मैं कल अस्पताल से जा सकता हूँ| मैं कल का इंतज़ार कर रहा हूँ, कल से मैं फिर से सबकुछ खा सकता हूँ और हाँ मुझे बारिश में भी भीगना है लेकिन ये रात जल्दी जाती क्यों नहीं, मुझे लगता हैं कि भगवान ने दो-तीन रात मिलाकर ये रात बनाई है| लेकिन अब मुझे बहुत जोर से नींद आ रही है लेकिन मैं सोना नहीं चाहता, कल का सुबह देखना है मुझे और अगर सो गया तो जल्दी नहीं उठूँगा| माँ हमेशा कहती है कि मैं सुबह देर से उठता हूँ| लेकिन मुझे बहुत तेज नींद आ रही है और मैं अपनी आँख अब और खुली नहीं रख सकता...
© Chandan

4 comments:

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