कभी कभी सोचता हूँ कि जिन्दगी कितनी जल्दी बदल जाती है। इक इच्छा थी की मै किसी मुकाम को पाऊं , आज मंजिल नजदीक नज़र आ रही है तो अजीब लग रहा है कि कभी जो मै हर बात के लिए अपने परिवार के सदस्यों पर निर्भर रहता था, कल मै आत्म-निर्भर हो जाऊंगा।
इक बच्चा जो कभी माँ-बाप की हर इच्छा को मानता है, बड़ा होने पर उसकी कोई इच्छा पूर्ति न होने के कारण उन्ही से बगावत कर बैठता है। एक न एक दिन मै भी अपनी इच्छा पूर्ति करना चाहूँगा, मेरे मन में भी कुछ सपने पल रहे हैं जिसके लिए हो सकता है कि मैं भी ऐसा कदम उठाऊँ... तो क्या जिन्दगी इतनी ही पल किसी का साथ निभाती है जब तक की उसके अपने पंख न हो जाएँ?
कभी-कभी ये भी सोचता हूँ कि आज जो मैं कर रहा हूँ या कल करूँगा , एक न एक दिन हमारी अगली पीढ़ी -वो भी ऐसा करेंगे उससे अगली पीढ़ी- वो भी एस करेगी। ये तो दूर की बात है, इससे पहले भी तो ऐसा होता आया है तो क्या यही जीवन चक्र है? जिसे हर इंसान पूरा करने कवायत करता रहता है? पीढ़ी दर पीढ़ी थोडा बदलाव थोडा परिवर्तन होता जाता है और एक दिन पुरे ढांचे परिवर्तित हो जाते हैं।
एक पति-पत्नी अपनी सारी जिन्दगी एक साथ गुजारते हैं लेकिन इससे जरा सा पीछे जाकर देखता हूँ कि जो आज एक दूजे के लिए न्योछावर है कलतक एक दुसरे को जानते भी नहीं थे। किसी की परवरिश किसी माहौल में हुई है और किसी की और माहौल में लेकिन वो भी एक-दूजे पे जान छिड़कते हैं और तो और कई बार परवरिश करने वाले माहौल यानि अपने पुराने संबंधों को भी नज़र-अंदाज़ कर देता है।
कहीं एसा तो नहीं कि हम दुनिया में किसी और मकसद से आये थे, ये सब इक दिखावटी दुनिया है या फिर एसा भी हो सकता है कि हमे इसी जीवनचक्र का इक हिस्सा बन कर रहना है...
आज जन्माष्टमी है इक अजीब माहौल है इक रौनक है आज हर कोई खुशियाँ मन रहा है लेकिन कल ये सब कुछ जैसे खो सा जायेगा। मेरे लिए तो आज भी बीते हुए कल जैसा ही है और कल भी वैसा ही रहेगा, जैसे ये सभी रौनके मेरे लिए फीकी पड़ गई हो ऐसा लगता है कि किसी चीज़ की तलाश में हूँ जो की मिल नहीं रही है। शायद मेरे मन को शांति उसके मिल जाने पर ही हो...ऐसा आज ही नहीं अक्सर मैं महशुश करता हूँ इतने सारे लोगो के बीच होते हुए भी, नए नए दोस्त बनाते रहने के बावजूद , नए नए लोगों के सोच को जानने के बावजूद भी जैसे इक अकेला सा हूँ। पता नहीं ये कहाँ जाके ये मन शांत होगा या फिर इस अशांति में ही जिंदगी गुज़र जाएगी...
इक बच्चा जो कभी माँ-बाप की हर इच्छा को मानता है, बड़ा होने पर उसकी कोई इच्छा पूर्ति न होने के कारण उन्ही से बगावत कर बैठता है। एक न एक दिन मै भी अपनी इच्छा पूर्ति करना चाहूँगा, मेरे मन में भी कुछ सपने पल रहे हैं जिसके लिए हो सकता है कि मैं भी ऐसा कदम उठाऊँ... तो क्या जिन्दगी इतनी ही पल किसी का साथ निभाती है जब तक की उसके अपने पंख न हो जाएँ?
कभी-कभी ये भी सोचता हूँ कि आज जो मैं कर रहा हूँ या कल करूँगा , एक न एक दिन हमारी अगली पीढ़ी -वो भी ऐसा करेंगे उससे अगली पीढ़ी- वो भी एस करेगी। ये तो दूर की बात है, इससे पहले भी तो ऐसा होता आया है तो क्या यही जीवन चक्र है? जिसे हर इंसान पूरा करने कवायत करता रहता है? पीढ़ी दर पीढ़ी थोडा बदलाव थोडा परिवर्तन होता जाता है और एक दिन पुरे ढांचे परिवर्तित हो जाते हैं।
एक पति-पत्नी अपनी सारी जिन्दगी एक साथ गुजारते हैं लेकिन इससे जरा सा पीछे जाकर देखता हूँ कि जो आज एक दूजे के लिए न्योछावर है कलतक एक दुसरे को जानते भी नहीं थे। किसी की परवरिश किसी माहौल में हुई है और किसी की और माहौल में लेकिन वो भी एक-दूजे पे जान छिड़कते हैं और तो और कई बार परवरिश करने वाले माहौल यानि अपने पुराने संबंधों को भी नज़र-अंदाज़ कर देता है।
कहीं एसा तो नहीं कि हम दुनिया में किसी और मकसद से आये थे, ये सब इक दिखावटी दुनिया है या फिर एसा भी हो सकता है कि हमे इसी जीवनचक्र का इक हिस्सा बन कर रहना है...
आज जन्माष्टमी है इक अजीब माहौल है इक रौनक है आज हर कोई खुशियाँ मन रहा है लेकिन कल ये सब कुछ जैसे खो सा जायेगा। मेरे लिए तो आज भी बीते हुए कल जैसा ही है और कल भी वैसा ही रहेगा, जैसे ये सभी रौनके मेरे लिए फीकी पड़ गई हो ऐसा लगता है कि किसी चीज़ की तलाश में हूँ जो की मिल नहीं रही है। शायद मेरे मन को शांति उसके मिल जाने पर ही हो...ऐसा आज ही नहीं अक्सर मैं महशुश करता हूँ इतने सारे लोगो के बीच होते हुए भी, नए नए दोस्त बनाते रहने के बावजूद , नए नए लोगों के सोच को जानने के बावजूद भी जैसे इक अकेला सा हूँ। पता नहीं ये कहाँ जाके ये मन शांत होगा या फिर इस अशांति में ही जिंदगी गुज़र जाएगी...