"हम जो भी रिश्ता आस-पास देखतें हैं उसे अगर हम खुद तक सिमित रहकर ना देखें बल्कि उससे अलग होकर उस रिश्ते को देखें तो मैंने महशुश किया है की हर रिश्ते की पुन्राव्रीती होती है, जो हम आज अपनी पीढ़ी में कर रहे हैं वही सिख तो अगली पीढ़ी को मिलेगी. अगर हम अपने ही घर में देखें तो अगर आज हम अपने माता-पिता की बात अनसुनी करते हैं तो हम अपनी अगली पीढ़ी से ये उम्मीद कैसे रख सकते हैं की वो हमारी बात सुने.
एक माँ अपनी बेटी को जिस निगाह से देखती है, उसका ख्याल रखती है अगर वही सोच अपनी बहु के लिए भी रखे तो शायद सास-बहु सीरियल न बने. एक पिता अपनी बेटी के ख़ुशी के लिए कुछ भी करता है, वो चाहता है की उसकी बेटी को ऐसा ससुराल मिले जहाँ उसे सब प्यार करे; क्या कभी वो खुद पर नज़र डालता है की क्या वो अपनी पत्नी की हर बात वैसे ही मानता है जैसे की बेटी के लिए चाहता है अगर नहीं तो वो ऐसी उम्मीद किसी और लड़के से कैसे रख सकता है.
मुझे किसी ने कहा "एक लड़की कितनी भी सेवा करे तब भी वो अपने पति कि रानी नहीं बन पाती... पर हज़ार गलतियाँ करने पर भी पापा के लिए राजकुमारी होती है"
लेकिन मेरा मानना है कि हम वही पाते हैं जो हम करते हैं. लड़की शादी करके अपने पति से ये उम्मीद करती है कि उसके पति उसकी ननद से ज्यादा उसकी बात माने और वही लड़की चाहती है कि उसका भाई अपनी पत्नी से ज्यादा उसकी की सुने अगर ऐसा न हुआ तो वो जोडू का गुलाम कहलाता है..."
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