इक अजीब सी आदत देखता हूँ लोगों में, पश्चिमी सभ्यता का असर ही सही, किसी भी दिन के आगे हैप्पी लगा के विश कर देते हैं। शुक्र है कि मरे हुए लोगों से सम्पर्क नहीं कर सकते नहीं तो लोग उन्हें भी उनके मरने की सालगिरह मानते हुए "हैप्पी डेथ डे" विश कर देते। नहीं, ख़राब आदत है मैं ये नहीं कहता और मैं ये तय करने वाला होता भी कौन हूँ लेकिन और भी मौजूद तरीके को अपना सकते हैं जो इससे बेहतर शुभकामनाये देने में सक्षम हो सकती है। आज मकर संक्रांति है। बहुतों को नहीं पता कि ये आखिर होता क्या है। पता है तो बस इतना कि आज पर्व है और "हैप्पी मकर संक्रांति" विश कर दिया। शुक्र है कि लोग क्रिश्मश के दिन "मैरी क्रिश्मश" ही विश करते हैं। ये अलग बात है कि "मैरी क्रिश्मश" ही क्यों बोलते हैं ये बात बहुतों को नहीं पता। सच पूछिये तो मुझे भी नहीं पता। अगर आपको पता हो तो मुझे जरुर बताईयेगा। वैसे ये जरुरी तो नहीं कि हर वो दिन जिसे विश किया जाता है वो हैप्पी ही हो। अनहैप्पी भी तो हो सकता है। खैर हो सकता है कि जो भी हमें विश करते हैं वो शायद हमारा अनहैप्पी कभी न चाहते हो इसलिए हमेशा हैप्पी ही विश करते हैं। जरा रुकिए ! एक बार फिर से मेरे पिछले वाक्य को पढ़िए। क्या सच में जितने लोग हमें विश करते हैं वो हमारा अनहैप्पी कभी नहीं चाहते? पता नहीं। हो सकता है। मुझे नहीं पता।
इससे पहले कि आप मुझपर इल्जाम लगायें कि मैंने सिर्फ सवालों को खड़ा कर के छोड़ दिया है, मैं आपको बता दूँ कि मैंने कोई सवाल नहीं खड़े किये हैं। मैंने सिर्फ अपने मन में कई वर्षों से इकठ्ठा हुए भड़ास को बाहर निकाल दिया ताकि अगर आप ने भी कभी ऐसा सोचा हो तो आप हिम्मत कर सके बोलने की। फिर भी अगर मैं अपना अल्टरनेटिव उपाय ना बताऊँ तो नाइंसाफी होगी। इसलिए कहे देता हूँ। अगर आप वाकई में खुश हैं और दूसरों को खुशियाँ बाँटना चाहते हैं तो उन्हें बांटिये जो इन खुशियों के लिए तड़प रहे हैं। और विश करके नहीं उन्हें सच में खुश करके। क्योंकि विश करने का आशय ही होता है कि आप रब से ऐसा चाहते हैं। लेकिन रब के सामने कभी किसी को मैंने दूसरों के लिए खुशियाँ मांगते हुए नहीं देखा है। सिर्फ अपने लिए मांगते हैं। हाँ.., याद आया, फिल्मो में देखा है दूसरों के लिए भी मांगते हुए। वैसे भी, मैं तो ठहरा नास्तिक मैं खुद के लिए नहीं मांगता तो दूसरों के लिए क्या मांगू। मैं तो दूसरों को खुश देखता हूँ तो अच्छा लगता है फिर कुछ ही क्षणों में लगता है कि ये खुशियाँ मुझे भी मिलनी चाहिए मतलब कि अगर दुसरे शब्दों में कहें तो थोड़ी बहुत इर्ष्या भी होती है। चलिए.... मेरी बातें आप कब तक बर्दाश्त करते रहिएगा। जाईये तिल और गुड खाईये।