Monday, 25 August 2014

माँ का प्यार: अनसुलझी रहस्य

कहते हैं न की किसी के महत्व का अहसास तब होता है जब वो हमारे पास न हो। सही है शत-प्रतिशत सही है। उसी न होने में एक अहसास माँ का पास न होना भी है। स्मरण है मुझे जब भी माँ पास होती है तो किसी बात को छुपाना बड़ा मुस्किल होता है खासकर अगर वो पीड़ा हो। किसी भी अनियमित व्यवहार को बिना बताये परख लेती है माँ। लेकिन वही व्यवहार अगर किसी और के सामने हो तो परखना तो दूर पर प्रश्न जरूर उठ जाते हैं।कभी कभी सोचता हूँ कि हर स्त्री कभी न कभी किसी किसी की माँ कहलाने का सौभाग्य प्राप्त करती है । ऐसा क्या है जो उसे अपने संतान से इस तरह जोड़ देती है कि उसे अपने संतान के हर पीड़ा की अनुभूति पहले ही ज्ञात हो जाती है? ऐसा भी नहीं कह सकता कि उनका यही प्रेम हर मनुष्य के लिए होता है। जो अगाध प्रेम माँ का अपने  संतान से होता है , जिस मनसा से वो अपने संतान का रक्षण करती है, वही मनसा अगर सबके साथ हो तो कैसा होगा? शायद किसी को माँ की कमी का अहसास नहीं होगा, शायद किसी को पीड़ा बताने का कष्ट न करना पड़ेगा, शायद किसीको किसी स्त्री के प्रति संदेह ना होगा, शायद किसी स्त्री के मन में किसी से इर्ष्य ना होगी। पर जानता हूँ ये मुमकिन नहीं है। अगर संसार में बुराई है तभी अच्छाई का महत्व है। अगर किसी के मन में इर्ष्या है तभी शायद प्रेम का भी महत्व है। बातें समाप्त नहीं हुई है, सवाल और भी हैं पर जेहन में है...

-Chandan

Friday, 15 August 2014

आज़ादी के कुछ रंग मेरी नज़रों से...

हर साल इसी दिन, गीतों या भाषणों में ही सही, सब अपने देश को याद करते हैं| कुछ रंग मैंने भी देखे हैं इस आज़ादी के तो सोचा की साझा करूँ आपसे कुछ ऐसे रंग जो आज सोचने पर मजबूर कर दिया...

एक रिक्से वाले से स्वतंत्रता दिवस की बधाई देते हुए पूछा कि उनको कैसा लग रहा है, जवाब निरासा-जनक था- " आज की छुट्टी होती ही क्यों है ? सवारी मिलता ही नहीं! अगर आज नहीं कमाया तो शाम को बच्चों को क्या खिलाएंगे?"

काफी कहूँ तो नाइंसाफी होगी लगभग सभी दोंस्तों से स्वंतत्रता दिवस की मुबारकबाद आई पर एक सन्देश ने चौंका दिया- " bad news for Bihar यही अच्छे दिन आने वाले थे अब बिहार में साला एक मुसहर तिरंगा फहराएगा"

आज भर के लिए भिखारियों को पुलिस हर बार सड़कों से हटा देती है | मेट्रो, सड़क, रेड लाइट कहीं भी भिखारी नज़र नहीं आया| क्या ये हमेशा के लिए नहीं हट सकता| सबको पता है की इन भिखारियों के माध्यम से कुछ गिनती के लोग पैसे कमाते है, भिखारी लोग तो बस उनके यहाँ नौकरी करते हैं जिसके बदले उसे दो वक़्त की रोटी मिल जाती है|

प्रधानमंत्री का भाषण सुना, काफी अच्छा लगा हालाँकि उम्मीदें और भी बहुत थी कि वो अपनी काम की बातें करेंगे लेकिन वो देश को घर के मुखिया की तरह समझा रहे थे | हर नागरिक को उसकी जिम्मेदारियों का अहसास करा रहे थे | ये अपनापन देख कर कुछ देर को लगा की ये संबोधन लाल बहादुर शास्त्री जी कर रहे हैं| लेकिन फिर भी निराशा हैं कि जो बातें उन्होंने कहा उनपर कितना अमल लोग करेंगे| फिर से कल वही सुबह होगी और फिर वही दुनिया देखने को मिलेगा " मेरा क्या मुझे क्या, तू हिन्दू तू मुसलमान, तू ब्राह्मण तू शुद्र"

सम्पूर्ण आज़ादी तो सही मायने में नहीं मिली है अभी बहुत से कार्य करने बाकी हैं| मैं कोई सलाह नहीं देना चाहता बस इतना याद रखिये इस देश को बनाने में आपकी एक कदम बहुत मायने रखती है | गीतों में ना सही, किसी दिवस पर ना सही पर अपने कर्म में देशभक्ति लानी जरूरी है| जाति, धर्म, लालच से ऊपर उठने की जरूरत है |