कहते हैं न की किसी के महत्व का अहसास तब होता है जब वो हमारे पास न हो। सही है शत-प्रतिशत सही है। उसी न होने में एक अहसास माँ का पास न होना भी है। स्मरण है मुझे जब भी माँ पास होती है तो किसी बात को छुपाना बड़ा मुस्किल होता है खासकर अगर वो पीड़ा हो। किसी भी अनियमित व्यवहार को बिना बताये परख लेती है माँ। लेकिन वही व्यवहार अगर किसी और के सामने हो तो परखना तो दूर पर प्रश्न जरूर उठ जाते हैं।कभी कभी सोचता हूँ कि हर स्त्री कभी न कभी किसी किसी की माँ कहलाने का सौभाग्य प्राप्त करती है । ऐसा क्या है जो उसे अपने संतान से इस तरह जोड़ देती है कि उसे अपने संतान के हर पीड़ा की अनुभूति पहले ही ज्ञात हो जाती है? ऐसा भी नहीं कह सकता कि उनका यही प्रेम हर मनुष्य के लिए होता है। जो अगाध प्रेम माँ का अपने संतान से होता है , जिस मनसा से वो अपने संतान का रक्षण करती है, वही मनसा अगर सबके साथ हो तो कैसा होगा? शायद किसी को माँ की कमी का अहसास नहीं होगा, शायद किसी को पीड़ा बताने का कष्ट न करना पड़ेगा, शायद किसीको किसी स्त्री के प्रति संदेह ना होगा, शायद किसी स्त्री के मन में किसी से इर्ष्य ना होगी। पर जानता हूँ ये मुमकिन नहीं है। अगर संसार में बुराई है तभी अच्छाई का महत्व है। अगर किसी के मन में इर्ष्या है तभी शायद प्रेम का भी महत्व है। बातें समाप्त नहीं हुई है, सवाल और भी हैं पर जेहन में है...
-Chandan