बेटा जीवांश,
आज तुम्हारा जन्मदिन है। तुमने एक वर्ष व्यतीत कर लिया अपने जीवन में। तुम्हे बहुत शुभ आशीर्वाद। पर सच पूछो तो जन्मदिन की बधाई और आशीर्वाद देने में भी मेरी धड़कने तेज हो जाती है क्योंकि कुछ यादें झकझोड़ देती है। आमतौर पर इस दिन लोग खुशियां मनाते हैं। हालांकि मुझे कभी ऐसा मौका नहीं मिला। पर इस पर कभी अफसोस भी नही हुआ क्योंकि यही सामान्य बात लगता है। मेरे लिए किसी दिन विशेष का कोई खास महत्व नहीं रहा। गांव के परिवेश में मेरे परिवार में किसी को मेरा जन्मतिथि भी नही पता होना भी आम बात थी। जब अपने युवावस्था में पहुंचा तो इक्ष्छा हुई कि अपना असल जन्मदिन पता चले जो कि कागजों से भिन्न है। बस मां को जितना याद था वो बताई कि दिन शुक्रवार था, अगहन महीना था, पंचमी था । मां ने बताया कि वो पढ़ी लिखी तो है नही कि लिख कर रखती, तारीख भी पंडित जी ने तुम्हारे छठी पर बताया था इसलिए याद है। मैने कहा पापा तो पढ़े लिखे हैं उनको भी तो कुछ याद नहीं कि मैं कब पैदा हुआ। बहरहाल मैने अपना जन्मदिन अंग्रेजी महीना में पता करने के लिए पंचांग देखना शुरू किया और जो तारीख मुझे समझ में आया मैने आगे से वो जन्मदिन सोशल मीडिया पर अपडेट किया ताकि मुझे उस दिन मुझे बधाइयां मिले। हां लेकिन कभी जन्मदिन मनाने की इच्छा नहीं हुई। केक काटना और भंडारा या अन्य कोई भी उत्सव मनाना तो दूर ही रहा। मुझे याद नहीं कि कभी मेरे जन्मदिन पर कोई विशेष आयोजन हुआ हो।
कुछ सालों बाद जब मेरी शादी तुम्हारी मां से हुई तो बहुत सी कहानियां बदल गई। चूंकि वो शहरी परिवेश में रही तो उसे अपना असली जन्मदिन पता भी था और मनाती भी थी जो अनवरत जारी भी रही। शादी के बाद मेरा जन्मदिन जब आया तो मैंने अनिक्षा ही जाहिर की किसी भी उत्सव को लेकर। और सोशल मीडिया से आने वाले संदेशों का आभार प्रकट करके ही मैं खुश था। पर शाम को तुम्हारे मामा केक लेकर आ गए और मैं मना नही कर पाया। मना करना अनुचित भी होता। छोटी छोटी खुशियां मना लेने में सुख होता है। पर एक बात जो उस दिन की आज भी टीस की तरह उभर आई वो ये कि जब मेरे पिताश्री को पता चला तो उन्होंने आशीर्वाद की जगह उम्र कम होने की हिदायत दे डाली। उन्होंने कहा कि इसमें खुशी की क्या बात है, एक वर्ष और कम हो गए जीवन में से। कई घंटो तक वो अपने मोबाइल पर ऐसे विडियोज चला कर आवाज तेज कर हमे सुनाते रहे जो इस बात को खिलाफत करता हो और बताता हो कि जन्मदिन खुशी नहीं शोक का विषय है। ये कसक शायद कभी न जाए मन से पर अपना लेना ही दुखों से मुक्ति देता है। मैने अपना लिया है पर कुछ खास मौकों पर यादें ताजा हो जाती है।
कितना सुंदर होता अगर हर मां बाप अपने बच्चों की खुशियों का जश्न मनाते। कितना सुंदर होता अगर मेरे साथ तुम्हारे दादा भी तुम्हारी तुम्हे दीर्घायु का आशीर्वाद देते। पर शायद ये संभव नहीं क्योंकि उन्होंने मेरे जन्मदिन पर मेरे उम्र से एक वर्ष कम होने की ज्यादा सनद रही है तो तुमसे अलग कैसे होगी। उन्होंने तो यहां तक भी कह दिया था तुम्हारी मां को कि मुझे कभी पुत्र न होगा। पर जब तुमने जन्म लिया तो मुझे लगा कि गलत उद्देश्य से दिया श्राप भी शायद भगवान निस्फल कर देते हैं। देखो आज तुम एक वर्ष के हो गए। आज जब तुम्हे देख तुम पर दुलार आता है तो साथ ही मन में अपने पिछले जीवन की घटनाएं भी याद आती है। पर ये सब किसी से कह नही सकता। पिछले ढाई साल से मैने किसी को कोई सफाई नही दी और चुप रहना चुना जो कि मेरे दादा की मुझे सलाह भी थी। इसके कुछ दुष्परिणाम ये हुआ कि जो झूठ फैलता गया वही सत्य बनता गया। जो मुझसे कभी न भी मिला उसे भी मेरे बारे में उलूल जूलूल पता है। मैं इन अवधारणाओं को तोड़ भी दूं अपने सत्य से पर हासिल क्या होगा। अनदेखा करके इन अवधारणाओं को कम से कम किसी को तो खुशियां मिल रही है। मैने कोसिस करके अपनी अपेक्षाओं पर काबू पाया है जो कि मुझे आगे बढ़ने में प्रबल सहायता देती है।
मैं तुम्हारे जन्मदिन पर आज ये यादें लिखने जा रहा हूं। शायद एक दशक बाद मैने फिर से कुछ मन का लिखा है। पहले काफी लिखता था। आज फिर से उसी गहनता और सच्चाई से लिख रहा हूं। शायद तुम मेरे अंदर की खुशियां यूहीं जगाते रहोगे। अगर दुख भी जगाओगे तो उसे खुशी में बदलने की कोसीस करूंगा ये तुमसे वादा है। तुम जब बड़े हो जाओगे तो इसे पढ़ोगे तो इसे कहानियों की तरह लेना। सीख मिले तो अपना लेना वरना अगली कहानी पढ़ने लग जाना। क्योंकि जीवन चलते जाने का नाम है।
तुम्हे अपने पहले जन्मदिन की बहुत शुभकामनाएं और शुभाशीर्वाद।
तुम्हारा पिता
चंदन